Thursday, October 05, 2006

शरद सुहावन, मधु मन भावन


मेरी यह रचना, " फिर गा उठI प्रवासी " मेरे काव्य -सँकलन से प्रस्तुत करना चाहती हूँ ...

शरद सुहावन, मधु मन भावन :

- चाँद उग़ आया पूनम का !
शरद ऋतु के, स्वछ गगन पर,
चाँद उग़ आया पूनम का !
सरस युगल सारस - सारसी का,
तैर रहा, झिलमिल जल पर !

खेत खलिहानोँ मेँ पकी फसल-
मुस्कान रँगे मुख, कृषक - वधू के
व्रत त्योहार - रास युमना तट
रुन झुन , रुन झुन, झाँझर के स्वर!

धरती डोली, हौले हौले, बहे पवन
-मुस्काता, बन, शशि, चँचल, हिरने पर !
फैलाती चाँदी सी- शरदिया चाँदनी
मँदिरोँ मेँ बज रहे - शँख ढफ
पखावज, मँजीरे धुन,कीर्तन के सँग!

आई शरद ऋतु मन भावन,
व्रत त्याहारोँ से घर आँगन पावन,
नवरात्र रास, माँ सिँहधारिणी सौम्य सुहावन!
करवा चौथ, दशहरा, आए पाप नशावन !

खनन्` - खनन्` मँजीर बज रहे
धमक -धमक रास की रार मची
-चरर्` चरर्` तैली का बैल चला
-सरर्` सरर्` चुनरी लिपटी रमणी पर -

शक्ति आह्वान करो! माँ भवानी सुमरो !
अम्बिका, वरदायिनी, कल्याणी, कालिका, पूजो!
घर - घर मेँ ज्योत, प्रखर कर लो !
शरद शारदा - वीणापाणि माँ सरस्वती भजो !
हरो तिमिर आवरण माँ, कृपा कर दो !

बिखरा दो, उज्जवल प्रकाश अवनी पर माँ !
शारदीय पूर्ण चन्द्र ज्योत्सना फैला दो माँ !
स्वागत, मँगल आगमन शरद - चँद्रिका माँ !
कृपा सिँधु, कमलिनी, सुमधुर स्मित बिखरा दो माँ !
जग तारिणी, सिँह आसनी ममता का कर, धर दो माँ !
जन - जन - के दु:ख हर, शीतल कर दो माँ!
कात्यायनी नमोस्तुते ! हे अम्बिके, दयामयी नमोस्तुते!
-- विनीत, लावण्या

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