सपनोँ का सँसार
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( my Grand son - Noah :)
अन्तर मनसे उपजी मधुर रागिनीयोँ सा,
होता है दम्पतियोँ का सुभग सँसार ,
परस्पर, प्रीत,सदा सत्कार,हो साकार,
कुल वैभव से सिँचित, सुसँस्कार !
तब होता नहीँ, दूषित जीवन का,
कोई भी, लघु - गुरु, व्यवहार...
नहीँ उठती दारुण व्यथा ह्रिदय मेँ,
बँधते हैँ प्राणोँ से तब प्राण !
कौन देता नाम शिशु को ?
कौन भरता सौरभ भँडार ?
कौन सीखलाता रीत जगत की ?
कौन पढाता दुर्गम ये पाठ?
माता दquot;र पिता दोनोँ हैँ,
एक यान के दो आधार,
जिससे चलता रहता है,
जीवन का ये कारोबार !
सभी व्यवस्था पूर्ण रही तो,
स्वर्ग ना होगा क्या सँसार ?
ये धरती है इँसानोँ की,
नहीँ दिव्य, सारे उपचार!
एक दिया,सौ दीप जलाये,
प्रण लो, करो,आज,पुकार!
बदलेँगेँ हम, बदलेगा जग,
नहीँ रहेँगे, हम लाचार!
कोरी बातोँ से नहीँ सजेगा,
ये अपने सपनोँका सँसार !
-- लावण्या
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