Thursday, December 07, 2006

आज का सच


हर कोई चाहता है,
हो मेरा एक नन्हा आशियाँ
काम मेरे पास हो,
घर पर मेरे अधिकार हो,
पर, यही, मेर्रा दquot;र तेरा ,
क्योँ बन जाता,सरहदोँ मेँ बँटा,
शत्रुता काकटु व्यवहार?
रोटी की भूख, इन्सानाँ को,
चलाती है,
रात दिन के फेर मेँ पर,
चक्रव्यूह कैसे ,फँसाते हैँ , सबको,
मृत्यु के पाश मेँ ?
लोभ, लालच, स्वार्थ वृत्त्ति,
अनहद,धन व मद का नहीँ रहता कोई सँतुलन!
मँ ही सच , मेरा धर्म ही सच दquot;र,
सारे धर्म, वे सारे, गलत हैँ !
क्योँ सोचता, ऐसा है आदमी ??
भूल कर, अपने से बडा सच!!
मनोमन्थन है अब अनिवार्य,
सत्य का सामना, करो नर,
उठॉ बन कर नई आग,
जागो, बुलाता तुम्हेँ विहान,
ल आया अब समर का !
-- लावण्या

0 Comments:

Post a Comment

<< Home