Tuesday, January 30, 2007

* काव्यमय बानी *

from : left : Lata , me, Rachna in front row - Vasavi sitting next to me & Deepika behind the occassion was my 3 rd Birth day ! ;-))

~~~~~~~~~~~~ * काव्यमय बानी * ~~~~~~~~~~~~~~~~~

मैँ जब छोटी बच्ची थी तब , अम्मा व पापा जी का कहना है कि, अक्सर काव्यमय वाणी मेँ ही अपने विचार प्रकट किया करती थी !


अम्मा कभी कभी कहती कि, " सुना था कि मयुर पक्षी के अँडे, रँगोँ के मोहताज नहीँ होते ! उसी तरह मेरे बच्चे पिता की काव्य सम्पत्ति विरासत मेँ साथ लेकर आये हैँ !"


यह एक माँ का गर्व था जो छिपा न रह पाया होगा. या, उनकी ममता का अधिकार उन्हेँ मुखर कर गया था शायद ! कौन जाने ? परँतु आज जो मेरी अम्मा ने मुझे बतलाया था उसे आप के साथ बाँट रही हूँ -


तो सुनिये,


एक बार मैँ, मेरी बचपन की सहेली लता , बडी दीदी वासवी, - हम तीनोँ खेल रहे थे. वसँत ऋतु का आगमन हो चुका था और होली के उत्सव की तैयारी बँबई शहर के गली मोहोल्लोँ मेँ , जोर शोरोँ से चल रही थीँ -


खेल खेल मेँ लता ने , मुझ पर एक गिलास पानी फेँक कर मुझे भीगो दीया !

मैँ भागे भागे अम्मा पापाजी के पास दौड कर पहुँची और अपनी गीली फ्रोक को शरीर से दूर खेँचते हुए बोली, " पापाजी, अम्मा ! देखिये ना ! मुझे लताने ऐसे गिला कर दीया है जैसे मछली पानी मेँ होती है ! "


इतना सुनते ही, अम्मा ने मुझे वैसे , गिले कपडोँ समेत खीँचकर . प्यार से गले लगा लिया ! बच्चोँ की तोतली भाषा, सदैव बडोँ का मन जीत लेती है.

माता , पिता को अपने शिशुओँ के प्रति ऐसी उत्कट ममता रहती है कि, उन्हेँ हर छोटी सी बात , विद्वत्तापूर्ण और अचरजभरी लगती है मानोँ सिर्फ उन्ही के सँतान इस तरह बोलते हैँ - चलते हैँ, दौडते हैँ -


पापा भी प्रेमवश, मुस्कुरा कर पूछने लगे, " अच्छा तो बेटा, मछली ऐसे ही गिली रहती है पानी मेँ? तुम्हेँ ये पता है ? "

" हाँ पापा, एक्वेरीयम ( मछलीघर ) मेँ देखा था ना हमने ! " मेरा जवाब था --


हम बच्चे,सब से बडी वासवी, मैँ मँझली लावण्या, छोटी बाँधवी व भाई परितोष अम्मा पापा की सुखी, गृहस्थी के छोटे, छोटे स्तँभ थे !


उनकी प्रेम से सीँची फुलवारी के हम महकते हुए फूल थे!


आज जब ये याद कर रही हूँ तब प्रिय वासवी और वे दोनोँ ,

हमारे साथ स -शरीर नहीँ हैँ !

उनकी अनमोल स्मृतियोँ की महक फिर भी जीवन बगिया को महकाये हुए है.


हमारे अपने शिशु बडे हो गये हैँ -- पुत्री सौ. सिँदुर का पुत्र नोआ ९ माह का हो गया है !


फुलवारी मेँ , आज भी, फूल , महक रहे हैँ !~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ - -- लावण्या

9 Comments:

Blogger Harshad Jangla said...

Your Fulwari is excellent.
May God blossom the Fulwari always and ever.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
Jan 30, 2007

2:48 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Thank you - Shukriya - Meherbani -
Arigato Gozaimas( Japanese ;) which I learnt for 6 months @ Nirmala Niketan Bombay - long ago !

5:23 PM  
Blogger Harshad Jangla said...

GRACIAS
In Spanish
means Thank you.
-Harshad Jangla

6:21 PM  
Blogger Divine India said...

बहुत अच्छा लगा यह लेख या बालपन की लीलाओं को जानकर…बचपन अत्यंत निर्दोष होता है और उपर से माता-पिता का प्यार जब मिलता है तो वह पल कितना सुखद होता है यह तो वो बचपन के दिन ही बताएँगे…।

12:13 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दिव्याभ,
शुक्रिया - आपने सच कहा -
" बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी,
गया ले गया तू, जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी "
-- लावण्या

1:28 PM  
Blogger nagarjuna said...

It is nice to see that I'm in touch a great person who is the friend of my all time favourite singer Lata mangeshkar.Is she Lata didi?It's amazing .......

8:36 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Nagarjuna ji,
LM = Lata Mangeshker ji is not in this pic. my childhood friend's name is also Lata --
but, I met Lata didi as I grew up in Bombay. Since she has sung many of my late father's songs.
Rgds,
L

8:00 PM  
Blogger Dr.Bhawna Kunwar said...

बचपन की यादें बहुत मधुर होती हैं।

9:38 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

डो. भावना जी,
बचपन की यादोँ को सीने से लगाये ना जाने हम कब बडे हो गये, पता भी ना चला ! :)
स -स्नेह,
लावण्या

1:39 PM  

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