Friday, March 23, 2007

आमँत्रण



समय की धारा मेँ बहते बहते,
हम आज यहाँ तक आये हैँ
-बीती सदीयोँ के आँचल से,
कुछ आशा के, फूल चुरा कर लाये हैँ !
हो मँगलमय प्रभात, पृथ्वी पर,
मिटे कलह का कटु उन्माद !
वसुँधरा हो हरी -भरी फिर,
चमके खुशहाली का प्रात: !!
-- लावण्या

6 Comments:

Blogger Udan Tashtari said...

सुंदर चित्रों के साथ सुंदर अभिव्यक्ति.

2:43 PM  
Blogger Harshad Jangla said...

Lavanyaji

khushhali ka pratah....
waiting eagerly
woh subha kabhi to ayegi....
Nice poem.

7:58 PM  
Blogger Monika (Manya) said...

एक और सुन्दर रचना है ये... आप कम में भी बहुत कह देती हैं मैडम... उम्मीद है ये आशा के फ़ूल खिलेंगे.. उस मंगल्मय प्र्भात के साथ...

4:20 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

धन्यवाद समीर भाई !
स~ स्नेह
- लावण्या

8:33 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Harshad bhai,
There r so many songs & lyrics that have posed the same anxious wait for such a Joyful Dawn isn't it ?
" Wo subah, kabhee to aayegee .."
&
" Jag ujiyara chaye ..
Kirano ki Rani gaye,
Jago hey, mere Man Mohan pyare
Jago..Mohan pyare Jago "
Such songs always uplift my mood ~~
Can you recall more songs like these ?? :-)
Rgds
L

8:37 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

मन्या,
याद आता है कि कक्षा ८ मेँ मेरे भाषा के टीचर ने एक बार, मेरे निबँध पर,
टिप्पणी लिखी थी, " " अर्थ -लाघव" भाषा के प्राण हैँ, उसे पल्लवित करो!"
ये वाक्य, भूलाये नहीँ भूलता ~~
स~ स्नेह
- लावण्या

8:40 AM  

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