घुघूती बासूती जी के प्रश्न : .....मेरे उत्तर...
(मेरी अम्मा सुशीला नरेन्द्र शर्मा मेरे छोटे भाई परितोष के साथ )
\
अरे ये क्या हुआ ? ........
कैसे हुआ ...
घुघूती बासूती जी ने फिर मुझे प्रश्नोँ के घेरे मेँ ला खडा किया !! ;-)
(जिनसे पूछे जा रहे हैं वे हैं.
.१ महेन्द्र जी
२ लावण्या जी )
.१ महेन्द्र जी
२ लावण्या जी )
घुघूती जी, ये कविता आपको सादर सप्रेम अर्पित करती हूँ ~~
" मस्त गगन पर उडती एक चिडिया,
पूछ रही है पहाडोँ से,
"क्यूँ ना जगाया ?
भैया था आया, मिलने मुझसे,
लेकर के मोती का हार ! "
छलक रही आँखेँ ,
पनिहारीन की,
पनघट पे,
रीति गगरी सा मन रीता
मैँ, बाट जोहती लिये,
मैके की प्यास !
घुघूती बासूती, हूँ,
मैँ, उडती फिरती,
जँगल, झरने,
बनफूल लजाती,
फिर फिर करती
मिलने की आस ! "
अब मेरे प्रश्न ....
देखती हूँ ....
+
मेरे उत्तर...
और उनके उत्तर,
यथासँभव :
सही सही लिखने की कोशिश...
पेश है !
१ आपको गीत, कविता, कहानी, लेख इनमें से क्या अधिक पसन्द है ?
मुझे , सबसे प्रिय गीत ही हैँ
-- जिसे गुनगुनाया जाये, अगर गानेवाले कलाकार की आवाज़ नफीस और दिल को छूनेवाली हो तब तो सोने पे सुहागा ही लगता है ~
` जैसे कि, लता दीदी के हज़ारोँ गीत मेरे प्रिय हैँ !
जिनके लिखनेवाले भी हमेशा उन गीतोँ से जुडे हुए याद आते हैँ.
२ क्या आपको सपने याद रहते हैं ? कोई दिलचस्प सपना सुनाइये ।
यदि याद नहीं तो कैसा देखना पसन्द करेंगे ?
जी हाँ, सपनो का मनोविज्ञान बडा अजीबोगरीब है
- कुछ यादगार सपने मैँने भी देखे हैँ !
-- एक बार सुबह का स्वप्न देखकर हडबडा कर नीँद तूटी थी !
कारण था, हमारे एक मित्र को उनके पूरे परिवार के साथ किसी नाव मेँ बैठे देखा था
-- उनकी कोलेज मेँ जाती बेटी, सामने आयी, आँखोँमेँ आँसू थे और,
बडे कातर स्वर मेँ कहे जा रही थी,
" आण्टी, देखिये, डेड ( पापा) को क्या हुआ है!"
उनके डेड
( उनके अपने पिताजी याने कि दादाजी )
=( जिनकी मृत्य़ु कई बरसोँ पहले हो गई थी )
व माँ के साथ, एक बेँच पर बैठे थे!
उनकी पत्नी भी माँ के बगल मेँ दिखीँ
और हमारे मित्र की कमीज मेँ एक लँबा छूरा गडा दीखा !!
जिससे खून बहे जा रहा था और वे बोले कि,
" देखो, मैँ मरा जा रहा हूँ !"
-- मैँने आगे बढकर उनकी बेटी के माथे को सहलाते हुए कहा,
" ना ना..कुछ नहीँ होगा ..सब ठीक हो जायेगा"
और आँख खुल गई !
सपना टूट गया !!
पर मेरा मन अशाँत और उदास हो गया :-((
-- मैँ मेरे भाई ( मौसी का बेटा ) के घर
( उत्तर केरोलाएना) से ओहायो ,
घर लौटी और इन्हेँ ( मेरे पति दीपक को ) सारा सपना सुनाया
और कहा कि, "फलाँ मित्र के लिये ये कैसा अशुभ स्वप्न देखा !!
अब क्या हो? "
इन्होँने साँत्वना देते हुए कहा,
" आज तुम ज्यादा प्रार्थना कर लेना .."
और हम इसे भूल ही जाते .....
किँतु,
२ दिन बाद ....
सवेरे, हमारे मित्र की धर्मपत्नी का टेलिफोन आया,कहा,
" जल्दी मेँ हूँ, इनको ( हमारे वही मित्र - जिनका नाम नहीँ लिख रही हूँ ) ओपरशेन के लिये ले जा रहे हैँ, " ट्रीपल बाय -पास" है,
(ह्र्दय की ३ धमनीयोँ को खोलने की शल्य -चिकित्सा )
~~ आप आज इनकी सलामती के लिये दुआ भेजिये !! "
हम सन्न रह गए !!
-- खैर, बात को लँबाना नहीँ चाहती पर ये सपना ज़िँदगी भर याद रहेगा !
और खुशखबरी ये है कि, हमारे मित्र भी अब स्वस्थ हैँ :)
जब हम उनसे मिलने गये,
तब उनके दीवँगत पिताजी की तस्वीर देख कर और एक अचँभा हुआ !
क्योँकि उनकी शक्ल मैँने, पहले मेरे इस चेतावनी भरे सपने मेँ देखी थी हूबहू वही चेहरा देखकर ,
मेरी मनोदशा कैसी हुई इसका बयान नहीँ कर सकती --
-- इसे क्या कहेँगे ? इन्ट्यूशन? अँदेशा ? या दैवी सँकेत?
३ क्या कभी कोई चिट्ठा आपको ऐसा लगा कि यह तो मेरे मन के भाव कह रहा है ? कौनसा?
एक कविता मेँ मैँने लिखा है -- " मन का क्या है ! सारा आकाश कम है ! "
तो सच कहूँ तो, एक का नाम न लेते हुए, सभी ब्लोग जगत के साथीयोँ को मेरे स्नेहसिक्त अभिवादन भेजते ~~
यही कहूँगी कि, जहाँ कहीँ कोई बात सीधे दीलसे निकली है, या कि दार्शनिकता लिये हुए हो
या प्रवास वर्णन, प्राकृतिक छवि समेटे बयानी हो, भाषा की रवानी हो, अपनी माटी की खुशबु लिये कोई मीठी दर्दभरी कहानी हो,
वे सारे " चिठ्ठे "= या " जालघर"
-- मेरे, "अन्तर्मन" ब्लोग के दूर के साथी से ही लगे हैँ और इस यात्रा के सहयात्री भी जिन्हेँ मैँ चाव से पढती हूँ और कुछ नया सीखने पर उन्हेँ मन ही मन शाबाशी भी देती हूँ --
४ जीवन का कोई मर्म स्पर्शी पल जो भूले नहीं भूलता ?
सबसे मर्मस्पर्शी पल आज याद करते ही अपने को एक नन्ही बच्ची सा पाती हूँ..
जब अलसाई दोपहरी मेँ, मेरी थकी हुई अम्मा की बगल मेँ, अम्मा पर पाँव फैलाकर सोने से जो सुख मिलता था और जो बेफीक्री महसूस की वो फिर कभी नहीँ ~
~ आज भी आँखेँ बँद कर लूँ तब,
एक लँबी साँस ले कर वही भाव के कुछ अँश जी पाती हूँ ~
~~ जो मेरे लिये, तनाव दूर करने की शक्ति देते हैँ..
नई उर्जा देते हैँ ~~~
"माँ तुम चली गईँ ..,
देह के बँधन सब तोड,
सारे रिश्ते नाते छोड,
सीमित सीमाओँ के पार,
जीर्ण शीर्ण देह के द्वार!
ममता का उजियाला बाल,
थके कदमसे, मूँदे नयन से,
हमेँ छोड कर गईँ!
माँ तुम चली गईँ !"
५ आपके जीवन का दर्शन (philosophy) क्या है ?
मेरा जीवन दर्शन बडा सँक्षिप्त व सरल है ~
" जीयो और जीने दो! खुश रहो और खुशी फैलाओ !"
आशा करती हूँ कि, आपके सवालोँ के सही जवाब दे पाई हूँ __
स -स्नेह,
लावण्या
5 Comments:
क्या कहूं लावण्या मैड्म, शब्द नहीं.. आपके उत्तर सिर्फ़ उत्तर नहीं लगे मुझे.. आपके हर अनुभव को मैन मह्सूस कर पा रही थी.. सब कुछ आखों के सामने घटित होता हो मानो.. आपने कम शब्दों में सब कुछ कह दिया.. सिर्फ़ ईमान्दारी ही नहीं थी भाव बह रहे थे .. यादों के.. बहुत अच्छा लगा आपके बारे में पढना, जानना.. लगता है है स्नेह से सरोबार है आपका मन .. जितना स्नेह आपने पाया है शाय्द उस से कहीं ज्यादा आप औरों से करती होंगी.. ऐस मुझे महसूस हुआ... it was gud experience to know someone like you who really know to give love n care.. n respect others.. gr8!!!
मेरा नाम आपको अच्छा लगा ध्न्यवाद मैडम.. नाम तो आपका सुंदर है.. इसका तो मतलब ही रूप-सौन्दर्य है.. और मुझे लगता है आपसे तो कोई भी प्र्भावित हुये बिना नहीं रह सकता होगा... और मुझे आप ना कहा करें...
प्रिय मन्या,
I'm so glad , you liked my thoughts ~~ I appreciate your responses a lot ! Thanx !!:-)
आपका नाम वाकई सुँदर है ! मेरा नाम रखा था एक कविर्मनिषी ने !
तो उनके आशिष ही समझलो जो नाम के साथ मिल गये हैँ मुझे --
आपने जो लिखा है मेरे लिये, उसे स्वीकार रही हूँ - यूँ भी स्नेह का
जीवन मेँ स्थान ना हो तब निरसता ही नि;रसता छा जाती है --
मनुष्य का आपसी सौहार्द व प्रेम ही हमेँ जगत से बाँधे रखता है, है ना?
स-स्नेह,
-- लावण्या
लावण्या जी, मेरे प्रश्नों के उत्तर देने के लिये धन्यवाद। आपके उत्तर बहुत ही सटीक,भावनापूर्ण व अच्छे लगे। पढ़ने में देर करने के लिये क्षमा कीजिये। मैं अक्सर आपके चिट्ठे को पढ़ती हूँ । आपका लिखा मुझे बहुत पसन्द है।
मेरे लिये लिखी कविता के लिये बहुत बहुत धन्यवाद। आपका गुजरात पर लिखा पत्र या टिप्पणी जो भी कहें भी मिला था । तब मन बहुत उद्वेलित था अत: चाह कर भी उत्तर न दे सकी। क्षमा चाहती हूँ।
आपसे एक निवेदन है, कृपा कर चन्द्र बिन्दु व केवल बिन्दु का अन्तर ध्यान में रखिये। आप हिन्दी लिखने के लिये क्या उपयोग करती हैं ? मैं तख्ती या हिन्दी कलम( http://www.hindikalam.com/ )का उपयोग करती हूँ। दोनों का उपयोग सरल है। भाषा की अशुद्धियाँ अच्छे अच्छे लेखन का मजा किरकिरा कर देती हैं। आशा है आप मेरे सुझाव को अन्यथा न लेंगी ।
घुघूती बासूती
घुघूती बासूती जी,
नमस्ते !
सबसे पहले, हिन्दी मैँ "http://hindini.com/tool/hug2.html " से लिखती हूँ - जिसमेँ
चँद्र बिँदु और सिर्फ बिन्दु का फर्क ठीक से नहीँ है --
आपने जो लिँक भेजी है, उसका उपयोग भी करके देखूँगी -
श्री अनूप भाई ( भार्गव जी " ने भी कालुआ वेब साएट बतलाई थी
पर न जाने क्यूँ, हिन्दिनी ही मुझे माफिक आ गई है --
वर्तनीयोँ की अशुध्धियोँ के लिये, क्षमा चाहती हूँ --
गुजरात मेँ जो हुआ उससे आपका मनशूँत हुआ ये तो होना ही था -
पता नहीँ कब लोगोँ के मनसे कटुता, वैर या धार्मिक अँधापन दूर होगा?
आप मेरे जाल घर को पढती हैँ सुनकर अच्छा लगा --
कृपया मार्ग दर्शन करती रहियेगा.
स~ स्नेह
- लावण्या
Post a Comment
<< Home