झूलणी : ~
राधे सँग सखी लालाजी, झूला झूलेँ हो!
तेरो कौन बने बनमाली, मुरलिया सोहत हो!
मुरली माँगन आयी राधे,तू ने ना कह दी !
स्याम बजाये बाँसुरिया, सुध बुध राधे,बिसराये हो!
राधे चलीँ सँग लेकर नारी, झूला झूलन हो!
झूले पर झाँझरिया बाजे, राधे झूलन लागी हो!
स्याम बजाये बाँसुरिया, सुध बुध राधे बिसराये हो!
राधे झूलत, कान्हा झूलत, दोनोँ झूलन लागैँ हो!
--लावण्या
6 Comments:
Wah!!Beautiful
बहुत सुंदर्…इसे कहते है कविता जिसे गुनगुनाया भी
जा सके…।एक-एक शब्द पुकार रही है कान्हा के अल्हड़पन को…Gr8!!!
दीव्याभ,जी,
आप इसे गुनगुनायेँगे तो मुझे खुशी होगी :)
आप के ब्लोग पर सँगीत स्वागत करता है जो बडा कर्ण प्रिय है -
कान्हा का अल्हड्स्पन और राधा रानी की माधुरी सँग हो तब राधा = धारा बन जाती है
और कान्ह की ओर ले आती है
स - स्नेह
--लावण्या
आप को एंव आपके समस्त परिवार को होली की शुभकामना..
आपका आने वाला हर दिन रंगमय, स्वास्थयमय व आन्नदमय हो
होली मुबारक
कान्हा-राधे को जहां भी देखती हूं खो सी जाती हूं.. फ़िर अगर ऐसी रच्ना हो तो क्या कहने.. राधवल्लभ के इस रूप-दर्शन कराने का धन्य्वाद ...
होली की शुभकामनाएँ !
सुन्दर रचना है ।
घुघूती बासूती
Very nice poem.
Holi ki Shubh Kamnaye.
-Harshad Jangla
Atlanta
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