Wednesday, October 11, 2006

आवागमन


आवागमन ( written : 4 th Dec. 1974 ) --लावण्या

आवागमन
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चलो मेरे मन बाल रवि तुम, तुम्हे नवेली उषा लिवाने आई !
जागो , निकलो, घर के बाहर, हो चुकी तारोँ की बिदाई !
लाख सात सौ, तारक बहनेँ सजा हवेली,
चाँद ने ब्याह कराईँ धरती के सूने आँगन पे उढने की,
अब बारी तुम्हारी आई !
तुम हो नन्हे, अभी शिशु से, लाज गाल पे पथराई
धीरे चढना, कुछ पल रूकना, कहे आम की अमराई !
देखो दूर सुदूर गाँव मेँ फैली भोर की अरुणाई
जीवन के सूने प्राँगण मेँ, शक्ति जीवन की मुस्काई !
वह किसान , ले हल निकाल, जा करने को रहा जुताई,
बैलोँके खुर की जुगल जोडी से, छम ~ छम बाजी पुरवाई !
ना शरमाना,देखो उपरसे, दुनिया काम से गहमाई,
वह माँ है, जो जुटी कर्म मेँ, ड्योढी जिसकी हर्षाई !
बालक उसका तुझे देखकर, पकडे तेरी, गरमाई,
छोटा रवि मेरा, उठ गया तू, क्या, कडी धूप रे बरसाई !
आह ! अब न कहूँ शिशु, बाल न मेरा फूटी तेरी तरुणाई,
हाय ! कुँलाचेँ भर, दौड कर, गया दिन ! - बजी अब शहनाई !
सज गया साँझ से ब्याह रचाने, हो गई, प्रेम की भरपाई !
कर ब्याह सुँदरी साँझसे, गया, रही मैँ ही प्यासी --
छिप गया ओट मेँ रात की, ना हुई , मेरे मन की चाही,
रात रात भर बहे जो आँसू, श्यामा, रात तारोँ से रतनाई !
ना दिखा मुझे तू, बाल ~ रवि, या, पौरुष वह,
साँध्य ,जिसकी गदराई, कर दिया प्रकाशित,
चँद्र दिवा भी, फिर भी, शाँति ही हाथ आई !
सब खोज तेरी जब व्यर्थ हुई तब, खिली चमेली कँपाई,
थके नयन ज्योँही, मूँदे मैँने, प्राची से तभी आवाज आई ...
" माँ क्या सो गईँ तुम ? जागो, मुझे लिवाने, उषा आई ! "
" छलने मेँ माहिर मेरा बेटा ! " कह माँ धरती, मुस्काई !

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