Thursday, October 05, 2006

NARGIS : नरगिस


NARGIS :
* नरगिस *
लहरा कर, सरसरा कर , झीने झीने पर्दो ने,

तेरे, नर्म गालोँ को जब आहिस्ता से छुआ होगा
मेरे दिल की धडकनोँ मेँ तेरी आवाज को पाया होगा
ना होशो ~ हवास मेरे, ना जजबोँ पे काबु रहा होगा
मेरी रुह ने, रोशनी मेँ तेरा जब, दीदार किया होगा !

तेरे आफताब से चेहरे की उस जादुगरी से बँध कर,
चुपके से, बहती हवा ने,भी, इजहार किया होगा
फैल कर, पर्दोँ से लिपटी मेरी बाहोँ ने

फिर् ,तेरे,मासुम से चेहरे को, अपने आगोश मेँ, लिया होगा
..तेरी आँखोँ मेँ बसे, महके हुए, सुरमे की कसम!

उसकी ठँडक मेँ बसे, तेरे, इश्को~ रहम ने,
मेरे जजबातोँ को, अपने पास बुलाया होगा
एक हठीली लट जो गिरी थी गालोँ पे,
उनसे उलझ कर मैँने कुछ सुकुन पाया होगा


तु कहाँ है? तेरी तस्वीर से ये पुछता हूँ मैँ.
.आई है मेरी रुह, तुझसे मिलने, तेरे वीरानोँ मैँ
बता दे राज, आज अपनी इस कहानी का,
रोती रही नरगिस क्यूँ अपनी बेनुरी पे सदा ?
चमन मेँ पैदा हुआ, सुखन्वर, यदा ~ कदा !!

-Lavanya Shah,

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