Friday, October 20, 2006

Pablo Neruda's Poem


Melancholy Song ( Hindi Translation of a Pablo Neruda's Poem written in PARAL -- Argentina , Chile ) 1971
Neruda won the prestigious Noble Prize for Literature in 1971 & died in 1973
व्यथा - गीत :
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तुम्हारी याद आसपास फैली रात्रि से उभरती हुई
--नदिया का आक्रँद, जिद्दी बहाव लिये, सागर मेँ समाता हुआ
बँदरगाह पर सूने पडे गोदाम ज्यूँ प्रभात के धुँधलके मेँ
-और यह प्रस्थान - बेला सम्मुख, ओ छोड कर जाने वाले !

भीगे फूलोँके मुखसे बरसता जल, मेरी हृदय कारा पर,
टूटे हुए सामान का तल, भयानक गुफा, टूटी कश्ती की
-तुम्हीँ मेँ तो सारी उडाने, सारी लडाइयाँ, इक्ट्ठा थीँ
-तुम्हीँ से उभरे थे सारे गीत, मधुर गीत गाते पँछीयो के पर
-एक दूरी की तरहा, सब कुछ निगलता यथार्थ --
दरिया की तरह ! समुद्र की तरह ! डूबता सबकुछ, तुम मेँ
वह खुशी का पल, आवेग और चुम्बन का !
दीप - स्तँभ की भाँति प्रकाशित वह जादु - टोना !

उस वायुयान चालक की सी भीति, वाहन चालक का अँधापन,
भँवर का आँदोलित नशा, प्यार भरा, तुम्हीँ मेँ डूबता, सभी कुछ!-

शैशव के धूँधलके मेँ छिपी आत्मा, टूते पँखोँ - सी ,
ओ छूट जानेवाले, खोजनेवाला , है- खोया सा सब कुछ!
दुख की परिधि तुम -- जिजिविषा तुम
-- दुख से स्तँभित - तुम्हीँ मेँ डूब गया , सब कुछ !

परछाइयोँकी दीवारोँ को मैँने पीछे ठेला
--मेरी चाहतोँके आगे, करनी के आगे, और मैँ , चल पडा !
ओ जिस्म ! मेरा ही जिस्म ! सनम! तुझे चाहा और, खो दिया
-- मेरा हुक्म है तुम्हे , भीने लम्होँ मेँ आ जाओ ,
मेरे गीत नवाजते हैँ -बँद मर्तबानोँ मेँ सहेजा हुआ प्यार
- तुम मेँ सँजोया था --
और उस अकथ तबाही ने, तुम्ही को चकनाचूर किया !
वह स्याह घनघोर भयानकता, ऐकाकीपन, द्वीप की तरह
-और वहीँ तुम्हारी बाँहोँने सनम, मुझे, आ घेरा
--वहाँ भूख और प्यास थी और तुम, तृप्ति थीँ !
दुख था और थे पीडा के भग्न अवशेष , पर करिश्मा ,
तुम थीँ !ओ सजन! कैसे झेला था तुमने मुझे, कह दो
-- तुम्हारी आत्मा के मरुस्थल मेँ, तुम्हारी बाँहोँ के घेरे मेँ
-मेरी चाहत का नशा, कितना कम और घना था
कितना दारुण, कितना नशीला, तीव्र और अनिमेष!
वो मेरे बोसोँ के शम्शान, आग - अब भी बाकी है,
कब्र मेँ --फूलोँ से लगदे बाग, अब भी जल रहे हैँ,
परवाज उन्हेँ नोँच रहे हैँ !वह मिलन था
-- तीव्रता का,
अरमानोँ का -जहाँ हम मिलते रहे ,
गमख्वार होते रहे
-और वह पानी और आटे सी महीन चाहत ,
वो होँठोँ पर, लफ्ज्` कुछ, फुसफुसाते गुए
-यही था, अहलो करम्, यही मेरी चाहतोँ का सफर
-तुम्हीँ पे वीरान होती चाहत, तुम्हीँ पे उजडी मुहब्बत !
टूटे हुए, असबाब का सीना, तुम्हीँ मेँ सब कुछ दफन !
किस दर्द से तुनम नागँवारा, किस दर्द से, नावाकिफ ?
किस दर्द के दरिया मेँ तुम, डूबीँ न थीँ ?
इस मौज से, उस माँझी तक, तुम ने पुकारा ,
गीतोँ को सँवारा, कश्ती के सीने पे सवार,
नाखुदा की तरह
-- गुलोँ मेँ वह मुस्कुराना, झरनोँ मेँ बिखर जाना,
तुम्हारा,उस टूटे हुए, सामान के ढेर के नीचे,
खुले दारुण कुँएँ मेँ !
रँगहीन, अँधे, गोताखोर,, कमनसीब, निशानेबाज
भूले भटके, पथ - प्रदर्शक, तुम्हीँ मेँ था सब कुछ, फना !

यात्रा की प्रस्थान बेला मेँ, उस कठिन सर्द क्षण मेँ,
जिसे रात अपनी पाबँदीयोँ मेँ बाँध रखती है
समँदर का खुला पट - किनारोँ को हर ओर से घेरे हुए
और रह जाती हैँ, परछाइयाँ मेरी हथिलियोँ मेँ,
कसमासाती हुईँ --सब से दूर --- सभी से दूर
---इस बिदाई के पल मेँ !
आह ! मेरे, परित्यक्यत्त जीवन !!!
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--- लावण्या

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