यह कवि अपराजेय निराला -- सादर नमन
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दिवँगत निराला के प्रति
हे कविर्मनिषी यश काय , निशब्दशब्दपति नमस्कार !
तुम चिर निन्द्रा मे लीन हुअ या, जगा गये फिर एक बार ?
हर शब्द तुम्हारा तप का फल वरदान वाक्य बन जाता था
अनिबध्धा सुबध्ध तरँगित स्वरछँदस बन कर मँडरता था !
आकार कल्पना को देकर हो गए शिल्पि तुम निराकार !
अन्तिम पँक्ति : हिँदी की शिरा धम्नीयोँमे जगा गये तुम फिर नया ज्वार !
स्व: पँ.नरेन्द्र शर्मा
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