Thursday, December 07, 2006

यह कवि अपराजेय निराला -- सादर नमन

( this is a Rare sepia pic. of Late Pt. Narendra Sharma dressed as Dulha along with Late Hindi poet Sree Sumitra Nandan "PANT " )




दिवँगत निराला के प्रति
हे कविर्मनिषी यश काय , निशब्दशब्दपति नमस्कार !
तुम चिर निन्द्रा मे लीन हुअ या, जगा गये फिर एक बार ?
हर शब्द तुम्हारा तप का फल वरदान वाक्य बन जाता था
अनिबध्धा सुबध्ध तरँगित स्वरछँदस बन कर मँडरता था !
आकार कल्पना को देकर हो गए शिल्पि तुम निराकार !
अन्तिम पँक्ति : हिँदी की शिरा धम्नीयोँमे जगा गये तुम फिर नया ज्वार !
स्व: पँ.नरेन्द्र शर्मा

0 Comments:

Post a Comment

<< Home