Thursday, December 07, 2006

हे मन !


रे मन, तूने ना मानी हार!
घाव लगा बार बार,
फिर भी,रे मन, तूने ना मानी हार !
हर प्रहार सह चुका, सुख दुख से दह चुका,
जन्म मरण देख चुका,
जीवन के प्राँगण मेँ रम चुका,
हे मन ! तूने ना मानी हार!
भाई बँधु, प्रेम मध,माया विश्वास बिछोह,
भोग चुका, छोड चुका, टूट गिरा जीवनका बेर !
कितनी ही बेर ! हे मन ! तूने ना मानी हार!
सोम रस , हलाहल, आज हँसी कल रुदन,
जीवनके मरुस्थल मेँ,या की नँदनवन मेँ,
कर रहा प्रसार !
तूने ना मानी हार!
हे मन ! तूने ना मानी हार!
~~ लावण्या

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