समय ! धीरे धीरे चल !
समय ! धीरे धीरे चल !
कितने हैँ बाकी काम अभी,
कुछ तुझको भी है ध्यान ?
सब तुझसे बँध कर चलते हैँ
उन्हेँ भी याद कर , नादान!
ओ समय ! धीरे धीरे चल !
जो बिछडे साथी हैँ उनका भी
कर लिहाज धर बाँह सभी,
भूखे, प्यासे मानव दल का,
बनना होगा विश्वास अभी -
ओ समय ! धीरे धीर चल!
ना व्यर्थ गँवाना अपने को,
शोर शराबे भरी गलियोँ मेँ,
जहाँ सिर्फ,खुमारी, रँग रेली हो,
क्या उनसे ही हो बात सभी ?
ओ समय ! धीरे धीर चल !
तेरे लिये, जलाये आशा दीप,
राह तकेँ राजा रँक, यही रीत!
तज पुरानी गाथाओँ के इतिहास,
रच आज कोई नव शौर्य गान!
ओ समय ! धीरे धीर चल!
इस पृथ्वी पट पर तू है,
भूत, भविष्य, का ज्ञाता,
सँवार रे, नये बरस को,
हो सुखमय, ये जग सारा!
ओ समय ! धीरे धीर चल !
-- लावण्या
-- लावण्या
2 Comments:
पर समय बडा बेरहम होता है खुशियों में तो दौड लगाता है पर दुख में मानो ठहर ही जाता है।
तभी हमेँ "स्थित -प्रज्ञता" का पाठ सिखला गये श्री कृष्ण
- भगवद्` गीता मेँ ~
स - स्नेह, लावण्या
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