अबोध का बोधपाठ !
आज आपके सामने एक सरल , बाल - कविता लिये हाजिर हूँ : ~~
हैँ छोटे छोटे हाथ मेरे,
छोटे छोटे पाँव,
नन्ही नन्ही आँखेँ मेरी
नन्हे नन्हे कान !
फिर भी हरदम चलता हूँ,
इन हाथोँ से करता काम
रोज देखता सुँदर सपना
सुनता हूँ सुँदर गान!
ऐ बडोँ हमारी सुनो प्रार्थना
तुम भी बच्चे बन जाओ,
छोडो झगडे और लडाई,
अच्छे बच्चे बन जाओ !
--- लावण्या
4 Comments:
layanya ji, chakit hun aisi kavia itane sunder saral aur arthpurna dhang se likhi dekh kar....badhayi. Bodhpath padhate abodh ka koi aur javab nahi.
Upasthit ji,
Dhanyawaad...
aapko " abodh ka bodh path " pasand aaya !
yehi hota hai, bachchon ke mukh se boli gayee baaton ko sunker bade log aascharya chakit ho jate hain !
Chitra mei jo Shishu hai wo meri putri ka beta hai ;-)
Lavanyaji
This poem took me back in 1952 when my parents used to recite a similar poem in Gujarati: Nana nana pug e chale dugmug.....
Nice poem. Dhanyavad.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
1 feb 2007
लावन्या जी रचना तो अच्छी है ही उसमें कोई शक नहीं। किन्तु आप तो अच्छी तरह जानती हैं हमें नोआ बहुत पसन्द है जैसा कि हम आपको पहले भी मेल में लिख चुके हैं।वैसे अब तो वो हमारे दोस्त भी बन गये हैं। क्यों सही कहा ना :)
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