Thursday, December 07, 2006

मेरे गीत बडे हरियाले,


मेरे गीत बडे हरियाले,
मैने अपने गीत,
सघन वन अन्तराल से
खोज निकाले
मैँने इन्हे जलधि मे खोजा,
जहाँ ग्रवित होता फिरोज़ा
मन का मधु वितरित करने को,गीत बने मरकत के प्याले !
कनक - वेनु, नभ नील रागिनी बनी रही वँशी सुहागिनी
-सात रँध्र की सीढी पर चढ,
गीत बने हारिल मतवाले !
देवदारु की हरित शिखर परा
अन्तिम नीड बनायेँगे स्वर,
शुभ्र हिमालय की छाया मेँ,
लय हो जायेँगे, लय वाले !
[ स्व. पँ. नरेन्द्र शर्मा ]

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