ओ पथिक !
आदquot; मिलकर दिया जलायेँ,आदquot; मिलकर दिया जलायेँ
बाँध प्रीत की डोरी आशा से,
नित नव - कर्म, बढायेँ,
हीम्मत भर कर बाजुमेँ,
फौलादी जड, रोडोँ को हटायेँ !
आयेगा कौन ? हाथ बटाने?
किससे माँगते तुम,खुद्दारी ?
जो करना है,या, आगे बढना है,
तुमसे ही सुरु, तुम पे ही सही !
एक दीप जलाता दीप अनेक
-ना हो उदास, दquot; पथिक !
बढे चलो, बढे चलो,
आगे बढो, निज बाहु बल पर कर विश्वास,
भरकर श्वारोँ मेँ धीर अकम्प आस,
एक एक पग पर पूरा भर विश्वास,
पथ को नापो, जग जीवनको साधो !
मत हीम्मत हारो, साथी, साधो !
from: --- लावण्या --
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