Thursday, February 15, 2007

बर्फ़


बर्फ़ ही बर्फ बिछी हो जमीँ पर,तब,
इन हौसलोँ का क्या होगा ऐ, मेरे दील !
हमने भी सुना था, कि,खुद को इतना तू कर बुलँद,
कि खुदा पूछे कि,' ऐ बँदे,बता, तेरी रजा क्या है?'
वीराँ लग रही जमीँ है तो क्या है ?
सब कुछ बदल जायेगा,जो उसकी रजा है !
जो हरी घास बिछी थी,कालीन -सी,
जमीँ पे मखमली,आज ढँकी है ,
सुफेदी ओढ,फिर फूल उठेँगेँ,
उन सूखे दरख्तोँ पे,मुस्कुराते,
हजार रँगोँ मेँ !
है करिश्मा ये तेरा कुदरत,
खुदा का रहमो करम है ये,
हैँ जब तक ऊसूल तेरे कायम,
ना हौसलोँ को टूटने का डर है !
बहारेँ फिर लौट आयेँगी -
चमन गुलजार बाग -बाग होगा
इसकी खुशी है मुझको एय खुदा
आबाद यूँ ही, तेरा रहमो करम होगा ! ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

-- लावण्या

3 Comments:

Blogger Harshad Jangla said...

Lavanyaji

Nice poem which describes a great amount of optimistic feelings.
Dhanyavad.
-Harshad Jangla
Feb 15 2007

1:14 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Thank you Harshad bhai --
I'm an optimistic human being -
it does not mean I've not shared any pain with rest of the Humanity -
but some how, I always felt that during my darkest hour of despair, some happiness will be awaiting, around the corner !
& this has pulled me through ~~
& my STEAD FAST FAITH in GOD !
All this I inherited from Papa ji & Amma.
Thanx for stopping by --
looking forward to your continued support & encouragement -
Rgds,
L

1:50 PM  
Blogger Divine India said...

ख़ुदा की इनायत ऐसी होती है जो सुराख से भी दरिया निकाल लाती है…जब भी देखा है नि:सीम नभ में मस्तक के उपर उसका श्रृंगार ही देखा है…कभी होता है चित्त बेहाल तो बारिश की बूंदों में घुलकर शांत हो जाता है…।
अनन्य रुपों में यह कविता हृदय को छू गई…।
बधाई!!

11:39 AM  

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