" रेणुका "-- भाग ५ -- पारस - स्पर्श
रेणुका
तुमरी कृपा तुम दियो जनाई जो जानत सोँ तुम हि हौँ जाई !
ज्ञान अवधेश गृह गेहिनी भक्ति शुभ तत्र अवतार भू भार हर्ता
भक्त सँकट पितु वाक्य कृतगमन किय गहन वैदेहि भर्ता
रुचिक तथा सत्यवती के पुत्र हुए जामद्ग्नि जिनका ब्याह ईश्वाकु वँशीय रेणुका से हुआ
- नर्मदा नदी के तीर पर रेणुका व जामदग्नि ने गृहस्थी बसा ली
उसी काल, महा विष्णु ने धरती का भार हरने के लिये, उनके पुत्र " परशुराम " के रुप मेँ जन्म लिया --
वे हमेशा अपने पास "परशु " या " फरसा " रखते थे --
जब परशुराम बडे हो गये तब श्री विष्णु का धनुष " विष्णु चाप " भी उनके पास था .
एक बार आश्रम को झाड बुहार कर , रेणुका नर्मदा से जल भरने गईँ -घडे मेँ पानी भरते रेणुकाने देखा कि, नर्मदा के शीतल जल मेँ "चित्ररथ " नामका गँधर्व तथा "कार्तववीर अर्जुन " अपनी पत्नियोँ समेत जल - विहार मेँ मग्न हैँ !
रेणुका समय भूलकर, बहुत देर तक उनका जल मेँ खेल करना देखतीँ रहीँ
-सो, उन्हेँ आश्रम पहुँचते देर हो गई
- इसी कारण जामद्ग्नि ऋषि कुपित हुए !
उन्होँने अपने पाँच -५ , पुत्रोँ को बुलाकर कडक कर आदेश दिया -
जामदग्न : " हे पुत्रोँ ! तुमनेँ से कौन मेरी आज्ञा का पालन करेगा ? मैँ आज्ञा देता हूँ - तुम अपनी माता का शिरच्छेद करो !"
ये सुनते ही, उनके चार -४ पुत्र हडबडा के दूर चले गए
- परँतु परशुराम ने बिना हिचके पिता की आज्ञा का पालन करते हुए रेणुका माता का सर फरसे से काट डाला - परँतु ये नीँदनीय व धृणास्पद कर्म करने के बाद परशुराम बेहोश हो गये -
-जामदग्नि : मेरे चार पुत्रोँ , जाओ मैँ तुम्हेँ " बनबासी " बनकर रहने का श्राप देता हूँ तुमने मेरी आज्ञा का पालन नहीँ किया तुम चारोँ को पिता पर श्र्ध्धा नहीँ मेरे परशुराम की भक्ति पूर्ण है ! बेटा परशु, आँखेँ खोल ! बोल तुझे क्या वरदान दूँ ? "
-परशुराम : " हे दयालु पिता ! मैँने कर्तव्यपालन किया - अब, कृपा कर आप अपने तपोबल से मेरी माता को जीवन दान देँ यही माँगता हूँ !"
- जामदग्नि : " अस्तु ! धन्य परशुराम ! "
" रेणुका, उठो ! "
और जामदग्नि के अपने कमँडलु से जल छिडकते ही रेणुका जीवित हुईँ !
माता और प्रभु रुप लिये पुत्र गले मिल गये
- पारस - स्पर्श से लोहा सोना बना -- रेणुका की आत्मा कँचन बन गई
-- " सब जानत प्रभु, प्रभुता सोई तदपि कहे बिनु रहा न कोई "
1 Comments:
Thats Beautifull...!!
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