पौराणिक वँशावलीयाँ
ॐ गायत्री देवी
OM GAYATRI DEVI
OM GAYATRI DEVI
पौराणिक वँशावलीयाँ :
भारतीय वाङमय से जो मैँ सृष्टि की उत्पति के बारे मेँ समझ पाई हूँ वह प्रस्तुत है :~~
स्वम्भू भगवान ने सर्व प्रथम जल की सृष्टि की - जल ही नीर है और उसमेँ शयन करनेवाले , वे, नारायण कहलाये - उसी जलमेँ एक स्वर्ण मय अण्ड उत्पन्न हुआ .दीर्घकाल के पश्चात उसी मेँ स्वयम्भू ब्रह्माजी उत्पन्न हुए. उस अण्ड के दो टुकडोँ से ध्यूलोक और भूलोक बने. उनके बीच, अवकाश की सृष्टि , ब्रह्माजी ने की. फिर जल के उपर तैरती पृथ्वी को स्थापित किया , दसोँ दिशाएँ बनाईँ फिर सात भावोँ से प्रेरित , सात प्रजापतियोँ को उत्पन्न किया. वे हैँ - " मरीचि, अत्रि, अँगिरा, पुलत्स्य, पुलह, क्रतु व वसिष्ठ - ये सात भी ब्रह्मा हैँ और ब्राह्मण तद्पश्चात, रोष से रुद्र प्रकट हुए !और पूर्वजोँ के पूर्वज, "सनत कुमार " उत्पन्न हुए - स्कन्द व सनत कुमार , दोनोँ अपने तेज का सँवरण करते रहते हैँ - फिर, विध्युत, मेघ, इन्द्रधनुष,पक्षी तथा पर्जन्य रचे - तद्पश्चात " रोहित "यज्ञ सिध्धि के लिये ऋक्`, यजु, साम बनाये --फिर मुख से देवता और वक्ष स्थल से पितृ गण बनाये --फिर उपसेन्द्रिय से मनुष्य व जँघा से असुर बनाये आगे, "साध्य" नामक प्राचीन देवोँ को बनाया तद्पश्चात अपने ही शरीर के दो भागोँ मेँ से एक से पुरुष व दूजे से नारी होकर मैथुनी प्रजा की सृष्टि की -भगवान विष्णु ने विराट पुरुष ब्रह्मा को रचा और ब्रह्माने पुरुष रचा -- उसी प्रथम "वैराज" पुरुष को हम, "मनु" कहते हैँ --उनकी पत्नी थीँ " शतरुपा" --
आपव प्रजापति को "प्रथम-सर्ग" कहते हैँ - और मनु की योनिजा प्रजा को द्वीतीय सर्ग कहते हैँ स्वायम्भुव मनु के चतुर्युगोँ को "मन्वन्तर" कहते हैँ - जिनके नाम हैँ " सत युग, त्रेता, द्वापर व कलि -- मनु व शतरुपा ने "वीर" को जन्म दीया - वीर ने काम्या से "प्रियव्रत और उत्तनपाद को जन्म दीया -- कर्दम प्रजापति की भी काम्या नामक पुत्री ने "प्रियव्रत" से विवाह कर, सम्राट, कुक्षि, विराट, व प्रभु, ये चार पुत्र उत्पन्न किये -प्रजापति अत्रि ने उत्तानपाद को पुत्र रुप मेँ ग्रहण कीया - उनके चार पुत्र पत्नी सुनृता, जो धर्म की पुत्री थीँ - उन से हुए -जिनमेँ बालक ध्रुव थे ूसरे पुत्र थे - कीर्तिमान्` , शिव व अयस्पति - ध्रुव की भक्ति से प्रसन्न होकर, नारायण ने उसे " सप्तृषियोँ से उत्तर दिशा मेँ एक स्थिर व अचल स्थान दीया ध्रुव ने शम्भु नामक पत्नी से विवाहोपराँत "श्लिष्टि " व "भव्य" नामक दो पुत्र पाये --श्लिष्टि और सुच्छायासे "रिप्य्" रिपुज़्न्जय, पुण्य, वृकल, वृकतेजा, जन्मे - आगे , रिपु के पत्नी बृहती से, "चाक्षुस " पुत्र हुए -- चाक्षुस व पत्नी पुष्करिणी से "मनु" नामक पुत्र हुए - मनु ने अरण्य की पुत्री नडवाला से ब्याह कीया व उनके १० पुत्र हुए -जिनके नाम हँ -- १) उरु, २) पुरु ३)शतध्युम्नु ४) तपस्वी ५) सत्ववान्`६) कवि ७) अग्निष्टुत ८)अतिरात्र ९)सुधम्न्यु १०) अभिमन्यु -- -
उरु व अग्निकन्या से अँग, सुमना, क्रतु, अँगिरा गय, उत्पन्न हुए - अँग ने मृत्यु की पुत्री सुनीथा से ब्याह कर "वेन" को जन्म दीया जो बडा अत्याचारी था पर मुनियोँ ने उसके दाहिने हाथ से पृथु को पैदा कीया जिसे क्षत्रिय कहा गया और वह पृथ्वी की रक्षा करने लगा -पृथु प्रथम भूपति कहलाते हैँ वे राजसूय यज्ञ मेँ अभिषिक्त हुए उन्हीँ के यज्ञ से सूत व मागध प्रकट हुए - पृथु के "पालित " व "अन्तर्धान" २ पुत्र हुए - अन्तर्धान ने शिखण्डिनी से "हविर्धान" पुत्र प्राप्त कीया हविर्धान ने अग्नि पुत्री "घिषणा" से प्राचीन, बर्हि, शुक्ल, कृष्ण, व्रज,और अजिन सँतानो को पाया --महीपति कहलाये "प्रभु प्राचीन बर्हि ने समुद्र की पुत्री सवर्णा से विवाह कीया जिनके दसोँ पुत्रोँ का नाम " प्रचेता" था -- वे सारे धनुर्वेद के पारगामी थे -वृक्षोँ के जलने पर वृक्ष अँशवाली कन्या "मारिषा" को सोम ने छिपा लिया था - उसी से ब्याह कर प्रेचेता ने दक्ष को जन्म दीया ० दक्षने १० कन्याएँ धर्म को, १३ कश्यप को, और नक्षत्र नामवाली २७ कन्याएँ चँद्रमा को दे दीँ --
--लावण्या
2 Comments:
इसकी शुरुआत तो नहीं हो रही है…।बहुत उम्दा रचना…अपने सांस्कृतिक धरोहर से हमारे पास यह एक बहुत बड़ी संपत्ति मिली है जिसे हम अपने जीवन में बदलाव कर करके उतार भी सकते हैं…।
Lavanyaji
Very interesting and important information. How great these names are. Every name has a meaning. Really hamare purvajo ki baten sunkar hame Bharatvasi hone ka garv hota hai.
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