Thursday, February 01, 2007

कुछ इधर की ..कुछ ..


दो जल की बूदें
सावन की बहती घटा से
उतर पड़ी सरिता में
बहते बहते एक नीर में
लगी संग बतियाने.

..........( रेणु आहुजा जी )

कुछ मेरे किस्से, कुछ तुम्हारे, कुछ खटटे, कुछ मीठी अमिया से,

हँसना रोना, मिलना , बिछुडना,ये जग के हैँ व्यारे ~~ न्यारे! .

....( लावण्या)


आसान काम कोई इस दील को नहीँ भाता है,

क्या करे यारोँ , मेरे पास नही छाता है ;-)

बारीश भी देखो आज, जोरोँ से आई है,

आज ही हमने अपनी कार भी धुलवाई है !


( अक्सर ऐसा ही होता है कि, जिस दिन आप अपनी गाडी धुलवाते हैँ उसी दिन बारिश हो जाती है - है ना ? ;--))

2 Comments:

Blogger Dr.Bhawna Kunwar said...

क्या बात है! काश गाडी के लिये भी हमारे पास छाता होता क्यों अच्छा रहता ना? जो गाडी चलाने में भी प्रयोग कार सकते :) :)

1:11 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भावना जी,
बारिश मे अक्सर चश्मे पर -- चाहे धूप का हो या दीर्घ द्रिष्टी के लिये लगाने वाला ही सही ! उनपे, वाइपर लगवाने का सोचती रहती हूँ -
अगर कार के लिये नये उपकरण इजाद किये जायेँ तब तो सुविधाएँ बढेँगीँ !!

स - स्नेह, लावण्या

10:25 AM  

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