Thursday, February 22, 2007

५ सवालोँ के जवाब


१.आपकी सबसे प्रिय पिक्चर कौन सी है? क्यों?

वीडीयो जब निकलीँ तब शिकागो से पहली फिल्म खरीद कर देखी - मुगले -आज़म -
तो शायद वही रही होगी मेरी प्रिय फिल्म :
उम्दा सँगीत, खूबसुरत छायाँकन, मधुबाला जी का हुस्न, श्री दीलिप कुमारजी की अदाकारी , पृथ्वीराज कपूर के प्रभावशाली अकबर, पुत्र वियोग मेँ, व्याकुल महारानी जोधा के रुप मे - दुर्गाबाई खोटे की छवि,सँगतराश का विद्रोह गान, " जिँदाबाद, जिँदाबाद ऐ मुहब्बत, जिँदाबाद" .. के.आसिफ साहब का नगीना आज भी बेसाख्ता चमक रहा है ..

२.आपके जीवन की सबसे उल्लेखनीय खुशनुमा घटना कौन सी है ?

जितने बरस बीते हैँ, उनमेँ हमेशा, "कभी खुशी कभी गम / या / यूँ कहूँ कि, "थोडी खुशी, थोडा गम" ही हासिल हुआ है -
"जिस हाल राखे, राम गुँसाई, उस बिध ही रहिये रे मनवा, राम भजन सुख लयै"

--ये मैँने मेरे एक भजन मेँ लिखा है -जिसे, अपने जीवन मेँ निभाया भी है --

पर, २० अप्रल,२००६ के रोशन दिवस पर, बिटिया की सफल प्रसूति के बाद, मेरे नाती को हाथोँ मेँ उठाया तब, सोचा,
"ईश्वर! आपकी कृपा से , मैँने अपनी इतनी जीवन यात्रा, पूरी की है ..आज इस प्रसाद को पाकर धन्य हो गई !

यूँही, मेरी नैया को पार करो.." ..यह एक अनोखी अनुभूति रही ..

३.आप किस तरह के चिट्ठे पढ़ना पसन्द करते/करती हैं?

सभी प्रकार के चिठ्ठे पढकर बहुत कुछ नया जानने को मिलता है -- हरेक की अपनी अलग विधा है - शैली है -- भद्दे मजाक, कटुता, छीछोरापन, दँभी वाक -बाण ना मुझे, न ही किसी और को पसँद आयेँगे -

फिर भी, व्यक्ति -स्वातँत्र्य की हिमायती हूँ --


४.क्या हिन्दी चिट्ठेकारी ने आपके व्यक्तिव में कुछ परिवर्तन या निखार किया?


"निखार ?? अब ये तो अपनी अपनी नजर का फेर है ;-)
हाँ, आँखेँ दुख जातीँ हैँ पर, हिन्दी मेँ लिखने का परिश्रम, सँतोष देता है --


५.यदि भगवान आपको भारतवर्ष की एक बात बदल देने का वरदान दें, तो आप क्या बदलना चाहेंगे/चाहेंगी?

" भारत -भाग्य विधाता ...जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे "
...मुझे ऐसी सत्ता मिले तो क्या बदलूँ ?

अराजकता, स्वछता के लिये आग्रह व श्रम और उनसे भी उपर, स्त्री की गरिमा को बढावा मिले उसके लिये,
सार्थक प्रयास अवश्य करना चाहूँगी ---

अब मैँ इन ५ हिन्दी ब्लोगरोँ से यही ५ सवालोँ के जवाब सुनना चहूँगी ---------

अविनाश भाई : मोहल्ला : http://mohalla.blogspot.com/2007/02/blog-post_2364.html

मृणाल कान्त :http://thoughtsinhindi.blogspot.com/

मनोशी की मानसी : http://www.manoshichatterjee.blogspot.com/

श्रीश शर्मा : http://epandit.blogspot.

प्रमोद सिंह : http://cilema.blogspot.com/

15 Comments:

Blogger Udan Tashtari said...

वाह लावन्या जी, क्या खुब बयानी रही. हम तो अभी तक जवाब ही खोज रहे हैं. अच्छा लगा पढ़कर. :)

5:30 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

समीर भाई,
धन्यवाद --
कुछ वर्तनी की गलतियाँ रह जातीँ हैँ - एक बार पोस्ट हो जाने पर , क्या उन्हेँ सुधारा जा सकता है ?
आपको और एक पुरस्कार मिला -
ढेरोँ बधाई स्वीकारेँ --
स ~ स्नेह,
लावण्या

5:49 PM  
Blogger उन्मुक्त said...

'फिर भी, व्यक्ति -स्वातँत्र्य की हिमायती हूँ' पढ़ कर अच्छा लगा।

6:00 PM  
Blogger rachana said...

आपके बारे मे भी जानने को मिला! आपका लिखा भी जरूर पढना चाहूगी.

10:23 PM  
Blogger Srijan Shilpi said...

आपके बारे में जानकर अच्छा लगा। आपकी आकांक्षाएँ सहज स्वाभाविक हैं। "अराजकता, स्वच्छता के लिये आग्रह व श्रम और उनसे भी उपर, स्त्री की गरिमा को बढावा मिले उसके लिये, सार्थक प्रयास अवश्य करना चाहूँगी" -- इन सभी बातों की सर्वाधिक जरूरत तो भारत में है। ईश्वर से आरजू है कि आपको अपने प्रयास भारत की दिशा में उन्मुख करने का भरपूर अवसर प्रदान करें।

10:52 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

उन्मुक्तजी,
आपका जाल -घर पढती रही हूँ -
बच्चनजी चाचाजी से किशोरावस्था मेँ कई बार मिलने का सौभाग्य मिला है -
काश! श्रीमान, फाइनमेन जैसे प्रबुध्ध वैज्ञानिक से भी मिल पाती !!
गणित मेरा सबसे कमजोर विषय रहा है - विज्ञान की कुछ शाखाएँ बहोत आकर्षक लगतीँ हैँ -
जैसे कि, खगोल शास्त्र - ज्योतिष, बोटनी एत्यादि - आप के लिखोँ को पढकर , सुलझे व स्पष्ट तरीके से
बातेँ सामने आईँ हैँ -- सो, आपको, बधाई !
पढ्ती रहूँगी ~~ आप को मेरी शुभकामनाएँ व यहाँ आकर आपकी टिप्पणी रखने के लिये,
धन्यवाद !
स ~ स्नेह,
लावण्या

9:01 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

रचनाजी,
नमस्ते !
आपने, यहाँ आकर आपकी टिप्पणी रखी ,उस के लिये,
धन्यवाद !
आसान तरीका बतलाऊँ ? गूगल सर्च मेइँ मेरा नाम लिखे
"लावण्या शाह" तब कई सारे लिन्क्स खुल जाते हैँ -
आप जिन्हेँ पढ पायेँगीँ --
स ~ स्नेह,
लावण्या

9:04 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

सृजन शिल्पी जी,,
नमस्ते !
आपने, भी, यहाँ आकर आपकी टिप्पणी रखी ,
उस के लिये, आपका भी आभार !

जी हाँ, भारत से १० वर्ष से दूर हूँ !
ये भी, विधि की विडँबना ही समझिये!

आपकी बात पर यही कहूँगी ~
~ कि, हाँ, शायद, मेरी नहीँ सुनते ईश्वर,
पर,शायद आपकी बात सुन लेँ ! क्या पता ?

और मै एक अँतराल के बाद,
फिर भारत मेँ अपने को पाऊँ !

आपका "श्री अर्विँद दर्शन " आलेख पढा -
उनकी जीवनी मेँ भी ये बात रही कि,
उनका उर्ध्वगामी विकास,
पुनह्: भारत भूमि के स्पर्श मात्र से,
धूमकेतु की तरह
प्रज्वलित हो गया था --
हम, मनुष्य / आत्मा,
"दीव्यात्मा" के सँकेत की ,
प्रतीक्षा की बाट जोहते हैँ -
जिसका हमेँ स्वयम्` पता नहीँ होता - -
अस्तु: ,इसी सद्` -आशा पर,
आप से आज्ञा लेती हूँ -

स ~ स्नेह,
लावण्या

9:16 AM  
Blogger ePandit said...

लो जी हम ने भी अपने जवाब लिख दिए। अच्छे से जाँच लीजिए जी।

6:33 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

शीर्ष जी,
आपने मेरा अनुरोध मान कर, ५ सवालोँ के जवाब बखूबी दे दीये ~~
धन्यवाद !
हँसने , हँसाने वाले लेख अक्सर, लोकप्रिय हो जाते हैँ - कविता तो
लोग बाग, सराफत के मारे , कवि का दिल रखने को , सुन/ पढ लेते हैँ :)
एक बार समाचार सुने थे कि, "दक्षिण अमरिका के ब्राज़ील देश के नगरोँ के बीच,
चलती बस मेँ, जब सारे यात्री, बैठ जावेँ, दरवाजा बँद हो जावे उसके बाद,कोई
कवि महाशय अपनी कविता पढना शुरु कर देते थे - यात्री , कहीँ जा न्ही पाते, या चलती
बस से उतर भी नहीँ पाते थे !
इसी को शायद अँग्रेज़ी मेँ "केप्टिव ओडीयन्स" [ Captive audience ] कहते हैँ !!
क़वियोँ के तो ऐसे हाल हैँ
आप पढाते रहिये...और "उत्तराँचल" के किस्से अवश्य सुनायेँ ..उत्सुक हूँ ..
बम्बई मेँ ही पली बडी हुई हूँ --उत्तराँचल नाम सुनकर ही , उसे देखने को मन करता है --
इसलिये...देर न करेँ ..
स - स्नेह,
लावण्या

My REPLY on your BLOG Shirsh ji --
25 February, 2007 8:11 AM

6:47 PM  
Blogger Unknown said...

लावण्याजी, आप सोच रही होंगी बेजी भी अजीब है...सवाल पूछे और गायब !!

जवाब तो पहले ही पढ़ लिए थे...टिप्पणी अब कर रही हूँ । जवाब के माध्यम से चाहती थी कि आपके व्यक्तित्व की पहचान कर सकूँ । वो तो हुआ नहीं...पर टिप्पणियों ने वो कर दिखाया ।
उन्मुक्त जी की तरह मुझे भी 'फिर भी, व्यक्ति -स्वातँत्र्य की हिमायती हूँ' पढ़ कर अच्छा लगा।

11:25 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बेजी जी,
आपने प्रश्न पूछे, परँतु, कोई कहाँ तक किसी भी अन्य को आज तक जान पाया है ? ;-) तह के भीतर भी कई तहेँ रहतीँ हैँ -
जैसे मैँने, लिखा है, अलग अलग लोग और अलग विचार - इन्हीँ पर दुनिया कायम है -
लावण्या

9:30 AM  
Blogger Neelima said...

लावण्या जी,बहुत साफ बयानी की है आपने ..आपके जवाबों से आपका व्यक्तित्व साफ झलकता है लिखते रहिए..

10:34 PM  
Blogger Dr.Bhawna Kunwar said...

लावन्या जी आपके जवाब बहुत अच्छे लगे। चलिये इन प्रश्नो के कारण कुछ प्रतिशत ही सही सभी के व्यक्तित्व की पहचान तो हो रही है और निकटता भी बढ़ती जा रही है। अच्छा लिखा है ऐसे ही लिखते रहियेगा।

1:05 AM  
Blogger Harshad Jangla said...

Lavanyaji
Since 22nd Feb there is no blog, creates disappointment.
Regards.
HTJ

7:52 AM  

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