Sunday, April 15, 2007

(पावन नदी नर्मदा) नर्मदे हर ! नर्मदे हर! ": भाग - ३


भारत मेँ एक यह भी रीवाज है कि, पावन नदीयोँ की परिक्रमा की जाये ! मनमेँ प्रार्थना लिये, हाथ जोडे, प्रणाम करते हुए, अगर भक्ति भाव सहित, नदी की परिक्रमा की जाये तब नर्मदा माई आपकी इच्छाओँ को पूरी करेँगी ऐसी लोक मान्यता है। 
" निर्धन को मिले धन,
बांझ को मिले बालक,
अँधे को मिले दर्शन,
नास्तिक को मिले भक्ति, टूटे
सारे बँधन, नर्मदे हर ! नर्मदे हर! "
जिस भूमि पर नर्मदा की पावन धारा बहती है वह तपनिष्ठ भूमि है।  भक्तोँ की मान्यता है कि, यमुना नदी के जल के ७ / सात  दिन समीप रहने के बाद, उसका जल पीते रहने के बाद, पूजा करने के बाद तथा सरस्वती नदी के जल का प्रभाव ३/ तीन दिवस के पश्चात  तथा  गँगाजी के जल में शरीर डूबोकर स्नान करने के पश्चात उक्त पवित्र नदियों का जल,   मनुष्य के इकत्रित किये हुए पापोँ को धो देता है ! किन्तु मैया नर्मदा ऐसी पावन नदी है कि, जिसके बस दर्शन करने मात्र से ही वे,  मनुष्य  के समस्त पापों को धो देतीँ हैँ ! नर्मदा माई के दोनों ही किनारे ये पावनकारी क्षमता रखते हैँ !
जिन ऋषियोँ ने नर्मदा नदी के समीप तपस्या की, जप तप व यज्ञ इत्यादि कीये हैं उनकी सूची अति विशद है।  कुछ  प्रमुख नाम इस प्रकार हैँ ~  जैसे, कि, देवराज इन्द्र, जल के देवता वरुण,  देवों  के धन के अधिपति कुबेर, जय गाथा महाभारत के रचियेता ऋषि वेद व्यास,  ब्रह्माजी के मानस पुत्र सनत कुमार, अत्रि ऋषि, ऋषि कुमार नचिकेता, भृगु महाराज, महर्षि च्यवन, पिप्पलाद, श्रीराम के गुरु ऋषि वशिष्ठ, ऋषि भर्द्वाज ऋषि कश्यप, गौतम, याज्ञवल्क्य,मार्केण्देय, शुकदेव, राजा पुरुरवा, नृपति मान्धाता, हीरण्यरेति, श्रीरँग अवधूत इत्यादी
लेखिका : लावण्या

9 Comments:

Blogger Gyan Dutt Pandey said...

आपने अनेक ऋषियों के नर्मदा के तट पर तप करते लिखा है - क्या "अत्रि" या उनके वंशज भी नर्मदा तट पर रहे है?
आपका लेखन बहुत रोचक है और चित्र तो उसमेँ चार चाँद लगाते हैं.

10:52 PM  
Blogger Dr.Bhawna Kunwar said...

अच्छी जानकारी दी आपने चित्रों सहित। बहुत-बहुत बधाई।

12:43 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

ज्ञानदत्त जी,
अत्रि ऋषि का नाम लिखा हुआ है -
देखियेगा --
परँतु उनके वशँजोँ के बारे मेँ अनभिज्ञ हूँ
मेरे लेखको पढने का और टिप्पणी रखने का शुक्रिया-
स -स्नेह,
लावण्या

8:53 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भावना जी,
आपने इसे पसँद किया - तब तो लिखना सफल हुआ -
मेरे लेखको पढने का और टिप्पणी रखने का शुक्रिया-
स -स्नेह,
लावण्या

8:54 AM  
Blogger Divine India said...

मैड्म मैं आपके शास्त्र परक ज्ञान का कायल हूँ इतनी गहरी समझ ओह्…!!!
सचित्र वर्णन पढ़कर लगरहा है की एक बार मैं भी
कुछ जाकर मांग ही लूँ।

12:25 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

दीव्याभ,
हाँ माँगने से ही "माँ " भी बच्चे को सँभालती है,
ईश्वर पर मेरा अटल विश्वास है !
शुक्रिया लिख मालिका को पसँद करने का! :)

10:12 PM  
Anonymous Anonymous said...

Bahut saras jankari di hai narmda ji ke sandarbh me. Dhanyawaad.Narmde har.

8:46 PM  
Blogger Pandit Bijender Attri said...

वैसे तो मुख्तय अत्रि ब्राह्मणों या उनसे बनी 9जातियों का बसने का मुख्य क्षेत्र उतर -भारत और यहाँ से चित्रकूट और चित्रकूट से वापिस उतर-भारत,बंगाल, ईरान, इटली, नेपाल, दक्षिण भारत,मध्य-भारत के साथ समूचे विश्व में फैले।

5:10 AM  
Blogger Pandit Bijender Attri said...

पाण्डेय जी, आप भी अत्रि हो क्या। मैं अत्रि गौत्र पर एक fb डोकोमेंट्री बना रहा हूँ। आपको अत्रि ब्राह्मणों के बारे में कोई जानकारी हो तो जरूर भेजना। fb डोकोमेंट्री,
��अत्रि ब्राह्मणों का गाँव-दर-गाँव बसने का इतिहास��

5:19 AM  

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