नर्मदे हर ! नर्मेदे हर !--नर्मदा क्षेत्र के तीर्थ स्थान : भाग - ४
नर्मदा क्षेत्र के प्रमुख तीर्थ स्थान : नर्मदा माई की उत्तर दिशा मेँ स्थित यात्रा के स्थलोँ की सूची इस प्रकार है ~~
१) परशुराम - हरी धाम २) भड भूतेश्वर, ३) भरुच,४) शुक्ल तीर्थ,
५) शिमोर,६) बडा कोरल ७) नारेश्वर (जो श्री रँग अवधूत जी का आश्रम स्थल है) ८) माल्सार ९) झानोर १०) अनसुआ ११) बद्री नारायन
१२) गँगनाथ १३ ) चानोड ,(जो दक्षिण का प्रयाग कहलाता है)
१४ ) कर्नाली १५ ) तिलकवाडा १६) गरुडेश्वर १७) हम्फेश्वर १८) कोटेश्वर १९) माधवगढ या रेवाकुँड २०) विमलेश्वर या अर्धनारेश्वर २१) माहेश्वर २२) मँडेलश्वर २३) बडवाहा २४) ओम्कारेश्वर २५) २४ अवतार
२६) श्री सीतावन २७) ध्याधि कुँड २८ ) सिध्धनाथ २९) भृगु कुत्छ
३०) सोकालीपुर ३१) ब्राह्मणघाट ३२) भेडाघाट३३) धुँधाधार
३४) तिलवाराघाट ३५) गौरीघाट ३६) जल हरी घाट ३७) मँडला घाट
३८) लिँग घाट या सूर्यमुखी नर्मदा ३९) कनैया घाट ४०) भीम कुँडी
४१) कपिल धारा ४२) अमर कँटक धाम ४३) माँ की बगिया
४४) सोनधार या सुवर्ण प्रपात ४५) नर्मदा उद्`गमस्थली।
१) परशुराम - हरी धाम २) भड भूतेश्वर, ३) भरुच,४) शुक्ल तीर्थ,
५) शिमोर,६) बडा कोरल ७) नारेश्वर (जो श्री रँग अवधूत जी का आश्रम स्थल है) ८) माल्सार ९) झानोर १०) अनसुआ ११) बद्री नारायन
१२) गँगनाथ १३ ) चानोड ,(जो दक्षिण का प्रयाग कहलाता है)
१४ ) कर्नाली १५ ) तिलकवाडा १६) गरुडेश्वर १७) हम्फेश्वर १८) कोटेश्वर १९) माधवगढ या रेवाकुँड २०) विमलेश्वर या अर्धनारेश्वर २१) माहेश्वर २२) मँडेलश्वर २३) बडवाहा २४) ओम्कारेश्वर २५) २४ अवतार
२६) श्री सीतावन २७) ध्याधि कुँड २८ ) सिध्धनाथ २९) भृगु कुत्छ
३०) सोकालीपुर ३१) ब्राह्मणघाट ३२) भेडाघाट३३) धुँधाधार
३४) तिलवाराघाट ३५) गौरीघाट ३६) जल हरी घाट ३७) मँडला घाट
३८) लिँग घाट या सूर्यमुखी नर्मदा ३९) कनैया घाट ४०) भीम कुँडी
४१) कपिल धारा ४२) अमर कँटक धाम ४३) माँ की बगिया
४४) सोनधार या सुवर्ण प्रपात ४५) नर्मदा उद्`गमस्थली।
नर्मदा माई की प्रशस्ति, जगद्`गुरु श्री शँकराचार्य जी ने " नर्मदाअष्टक " की रचना करके भारतीय जन मानस मेँ नर्मदा माई का महत्त्व प्रतिष्ठित किया है।
श्री नर्मदाष्टकम
सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। १
त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। २
महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ३
गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ४
अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।५
सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ६
अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ७
अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ८
इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम 9
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
*******************************************
अक्सर कहा जाता है कि, "नदी का स्त्रोत और साधु का गोत्र कभी न पूछेँ ! "
परन्तु जब भी धीमे, शाँत जल प्रवाह को दुस्तर पहाड के बीच रास्ता निकाल कर बहते हुए हम जब भी देखते हैँ तब ये सवाल मन मेँ उठता ही है कि, इतना सारा जल कहाँ से आता होगा ? इस महान नदी का अस्त्तित्व कैसे सँभव हुआ होगा ? जीवनदायी, पोषणकारी निर्मल जलधारा हमेँ मनोमन्थन करवाते हुए, परमात्मा के साक्षात्कार के लिये प्रेरित करती है जो इस शक्ति के मूल स्त्रोत की तरफ एक मौन सँकेत कर देती है।
नमामि देवी नर्मदे ।नर्मदा अष्टक -
श्री नर्मदाष्टकम
सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम
द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम
कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। १
त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम
कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं
सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। २
महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं
ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम
जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ३
गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा
मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा
पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ४
अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं
सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम
वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे।५
सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै
धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदै:
रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ६
अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं
ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं
विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ७
अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे
किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे
दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे। ८
इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा
पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम कदा
सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम
पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम 9
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे
त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे
*******************************************
अक्सर कहा जाता है कि, "नदी का स्त्रोत और साधु का गोत्र कभी न पूछेँ ! "
परन्तु जब भी धीमे, शाँत जल प्रवाह को दुस्तर पहाड के बीच रास्ता निकाल कर बहते हुए हम जब भी देखते हैँ तब ये सवाल मन मेँ उठता ही है कि, इतना सारा जल कहाँ से आता होगा ? इस महान नदी का अस्त्तित्व कैसे सँभव हुआ होगा ? जीवनदायी, पोषणकारी निर्मल जलधारा हमेँ मनोमन्थन करवाते हुए, परमात्मा के साक्षात्कार के लिये प्रेरित करती है जो इस शक्ति के मूल स्त्रोत की तरफ एक मौन सँकेत कर देती है।
पँचमहाभूतमेँ से जल तत्व आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी से मानव शरीर सूक्ष्म रुप मेँ ग्रहण करता है उसीसे जल तत्व से हमारा कुदरती सँबध स्थापित हुआ है। जल स्नान से हमेँ स्फुर्ति व परम् आनंद प्राप्त होता है। मनुष्य की थकान दूर हो जाती है तथा मन व शरीर दोनोँ प्रफुल्लित होते हैँ। जब ऐसा स्वच्छ जल हो जो प्रवाहमान हो, मर्र मर्र स्वर से बहता हो, कल कल स्वर से जाता हुआ बह रहा हो, अपनी जलधारा के संग प्रकृति का मधुर सँगीत लेकर बह रहा हो तथा स्पर्श करने पर शीतल हो तब तो मनुष्य की प्रसन्नता द्वीगुणीत हो जाती है ! ऐसा नदी स्नान करना हमारी स्मृतियोँ मेँ सदा सदा के लिये बस जाता है ! जिसकी बारम्बार स्मृति उभरती रहती है।
लेखिका : लावण्या
8 Comments:
Very Very interesting.
Thanx & Rgds.
बड़ी रोचक श्रृंखला!!
पहला चित्र प्रकृति की सुंदर कविता है तो दूसरा चित्र भारतीय संस्कृति की अद्भुत कथा .
Dhanywaad Harshad bhai -
Rgds,
L
आभार आपका समीर भाई !
प्रियँकरजी,
मेरे लेखको पढने का और टिप्पणी रखने का शुक्रिया-
स -स्नेह,
लावण्या
बहुत उम्दा रचना है…श्रृंखला की रोचकता को आपने बरकरार रखा है…।
दीव्याभ,
नर्मदा बचाओ आँदोलन से भी कई साल हुए, नर्मदा जी पर लोगोँ का ध्यान आया था उस वक्त यह कुछ सामग्री
सम्शोधन करके इकट्ठा की थीँ -- वही प्रस्तुत है --
पसॅम्द आईँ तब तो लिखना सफल हो गया -धन्यवाद!
Post a Comment
<< Home