Thursday, May 24, 2007

श्री अमृतलाल नागर - संस्मरण - भाग -- ३

[पँडित नरेन्द्र शर्मा और प्रसिध्ध छायावादी कवि श्री सुमित्रा नँदन पँत जी -- नरेन्द्र शर्मा के शादी के सुअवसर पर ]
अब गताँक से आगे : ~~
भगवती बाबू तो " बोम्बे टाकिज" से जुडकर बम्बई आये थे लेकिन मैँ फ्रीलाँसर था. तब तक दो तीन फिल्मोँ मेँ डायरेक्टर जुन्नरकर की फिल्म " सँगम" के गीत सँवाद लिख कर जब बँबई लौटा तो अपने मित्र फिल्म स्टार और निर्देशक स्वर्गीय किशोर साहू के साथ ही उनके घर पर रहने लगा. वह भी उन दिनोँ बम्बई की फिल्मी दुनिया मेँ नये सिरे से अपने को जमाने मेँ लगे थे और
" आचार्य आर्ट प्रोडक्शन" के साथ जुडकर " कुँआरा बाप" नामक एक हास्य रस की फिल्म बनाने की योजना उन्होँने मुझे बताई . किशोर मुझसे बोले," पँडितजी अभी पैसे की तो कोई बात तुमसे नहीँ कर सकता लेकिन तुम मेरी मदद कर सको तो बहुत अच्छा है -"

मैँ उन दिनोँ श्रीमती लीला चिटनीस के लिये एक फिल्म के सँवाद लिख रहा था और वहाँ की बहसबाजी से बहुत दुखी था. इसलिये मैँने किशोर का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया. " कुँआरा बाप" फिल्म ने किशोर को फिर से फिल्म लाइन मेँ जमा दीया ! वह पहले श्रीमती देविका रानी के साथ " बोम्बे टाकिज " की एक फिल्म " जीवन प्रभात" मेँ हीरो बन चुके थे और उनके साथ मुझे भी अपूर्व ख्याति मिली मेरा काम बढ गया था - किशोर और मेरा दोनोँ ही का स्थायी अड्डा दादर के "श्री साउन्ड स्टुडियोज़ " मेँ ही रहता था. एक दिन वहीँ बोम्बे टाकिज से भगवती बाबू का फोन आया , " गुरु, हम आ गये हैँ ! " सुनकर मेरा मन खिल उठा ! मैँने कहा, " क्या नरेन्द्र जी भी आये हैँ ? " " हाँ आज शाम को डाक्टर मोतीचँद्र के यहाँ आओ, खाना - पीना भी वहीँ रहेगा "शाम को कोलिज स्ट्रीट पहुँच गया - नरेन्द्र जी को देखकर चित्त प्रसन्न हो गया ! नरेन्द्र जी मोटे तो कभी नहीँ थे परन्तु उस समय जेल की कष्ट यातनाएँ सहकर वह काफी दुबले हो गये थे. सन इकतालीस के अँत तक मेरी पत्नी और मँझला भाई स्वर्गीय रतन बम्बई आ चुके थे. रोटी पानी का जुगाड घर मेँ ही जम चुका था , इसलिये बँधुवर नरेन्द्र जी को अक्सर भोजन के लिये अपने घर बुला लेता था . इस तरह प्रतिभा ( मेरी पत्नी ) से भी उनका नेह नाता अच्छा जुड गया था. नरेन्द्र जी बडे ही पुरमजाक आदमी थे. हम तीनोँ मेँ खुलाव भी काफी आ गया था. वह आयु मेँ मुझसे तीन वर्ष बडे थे इसलिये प्रतिभा उन्हेँ " जेठजी - देवरजी " कहा करती थी. " जेठजी - देवरजी ", आज आपके लिये क्या बनाऊँ ? "
कभी कभी वह अपनी पसँद की चीजेँ उनसे बनाने के लिये कह भी दिया करते थे.

इसबीच हमने घूमकर लगभग सारी बम्बई छान मारी और इस तरह उनके पूर्व जीवन के सँबध मेँ बहुत कुछ जान लिया. लखनऊ का होने के कारण वे मुझे अक्सर " लखनाऊओ " शहर का निवासी कहा करते थे और खुर्जा स्थित 'जहाँगीरपुर " के निवासी होने के नाते मैँ उन्हेँ " कुरु जाँगलीय" कहा करता था. खुर्जा कुरु जाँगल का ही बिगडा हुआ नाम है. उनके पिता पँडित पूरनलाल जी गौड जहाँगीरपुर ग्राम के पटवारी थे बडे कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार, सात्विक विचारोँ के ब्राह्मण ! अल्पायु मेँ ही उनका देहावसन हो गया था. उनके ताऊजी ने ही उनकी देखरेख की और पालन पोषण उनकी गँगा स्वरुपा माता स्व. गँगादेवी ने ही किया. आर्यसमाज और राष्ट्रीय आँदोलन के दिन थे, इसलिये नरेन्द्र जी पर बचपन से ही सामाजिक सुधारोँ का प्रभाव पडा, साथ ही राष्ट्रीय चेतना का भी विकास हुआ. नरेन्द्रजी अक्सर मौज मेँ आकर अपने बचपन मेँ याद किया हुआ एक आर्यसमाजी गीत भी गाया करते थे, मुझे जिसकी पँक्ति अब तक याद है -- " वादवलिया ऋषियातेरे आवन की लोड" लेकिन माताजी बडी सँस्कारवाली ब्राह्मणी थीँ उनका प्रभाव बँधु पर अधिक पडा.
जहाँ तक याद पडता है उनके ताऊजी ने उन्हेँ गाँव मेँ अँग्रेजी पढाना शुरु किया था बाद मेँ वे खुर्जा के एक स्कूल मेँ भर्ती कराये गये. उनके हेडमास्टर स्वर्गीय जगदीशचँद्र माथुर के पिता श्री लक्ष्मीनारायण जी माथुर थे. लक्ष्मीनारायण जी को तेज छात्र बहुत प्रिय थे. स्कूल मे होनेवाली डिबेटोँ मेँ वे अक्सर भाग लिया करते थे. बोलने मेँ तेज ! इन वाद विवाद प्रतियोगिताअओँ मेँ वे अक्सर फर्स्ट या सेकँड आया करते थे. जगदीशचँद्र जी माथुर नरेन्द्र जी से आयु मे चार या पाँच साल छोटे थे. बाद मेँ तत्कालीक सूचना मँत्री बालकृष्ण केसकर ने उन्हेँ आकाशवाणी के डायरेक्टर जनरल के पद पर नियुक्त किया. जगदीशचँद्र जी सुलेखक एवँ नाटककार भी थे तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय मे पढते समय भी उनका श्रेध्धेय सुमित्रा नँदन पँत और नरेन्द्र जी से बहुत सँपर्क रहा . वह बँधुको सदा " नरेन्द्र भाई "ही कहा करते थे -- अवकाश प्राप्त करने के बाद , एक बार मेरी उनसे दिल्ली मेँ लँबी और आत्मीय बातेँ हुईँ थी उन्होँने ही मुझे बताया था कि उनके स्वर्गीय पिताजी ने ही उन्हेँ ( बँधु को ) सदा
" नरेन्द्र भाई " कहकर ही सँबोधित करने का आदेश दिया था.
नरेन्द्र जी इलाहाबाद मेँ रहते हुए ही कविवर बच्चन, शमशेर बहादुर सिँह, केदार नाथ अग्रवाल और श्री वीरेश्वर से जो बाद मेँ "माया" के सँपादक हुए , उनका घनिष्ट मैत्री सँबध स्थापित हो गया था. ये सब लोग श्रेध्धय पँतजी के परम भक्त थे. और पँतजी का भी बँधु के प्रति एक अनोखा वात्सल्य भाव था, वह मैँने पँतजी के बम्बई आने और बँधु के साथ रहने पर अपनी आँखोँ से देखा था. नरेन्द्र जी के खिलँदडेपन और हँसी - मजाक भरे स्वभाव के कारण दोनोँ मेँ खूब छेड छाड भी होती थी.
किन्तु, यह सब होने के बावजूद दोनोँ ने एक दूसरे को अपने ढँग से खूब प्रभावित किया था. नरेन्द्र जी की षष्ठिपूर्ति के अवसर पर, बँबईवालोँ ने एक स्मरणीय अभिनँदन समारोह का आयोजन किया था. तब तक सुपर स्टार चि. अमिताभ के पिता की हैसियत से आदरणीय बच्चन भाई भी बम्बई के निवासी हो चुके थे. उन्होँने एक बडा ही मार्मिक और स्नेह पूर्ण भाषण दिया था, जो नरेन्द्र के अभिनँदन ग्रँथ " ज्योति ~ कलश" मेँ छपा भी है - उक्त अभिनँदन समारोह मेँ किसी विद्वान ने नरेन्द्र जी को प्रेमानुभूतियोँ का कवि कहा था ! इस बात को स्वीकार करते हुए भी बच्चन भाई ने बडे खुले दिल से यह कहा था कि अपनी प्रेमाभिव्यक्तियोँ मेँ भी नरेन्द्र जी ने जिन गहराइयोँ को छुआ है और सहज ढँग से व्यक्त किया वैसा छायावाद का अन्य कोई कवि नहीँ कर पाया !
क्रमश: ~~~~~~




2 Comments:

Blogger Dr.Bhawna Kunwar said...

संस्मरण पढ़ा। पढ़कर अच्छा लगा ।आपका प्रयास सराहनीय है। आपको बहुत-बहुत बधाई ।आगे भी प्रतीक्षा रहेगी।

8:36 AM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भावना जी,
मेरे चाचा जी श्री अमृतलाल नागर जी की शैली तरल तरँगोँ सी मनमोहक है -
- पढियेगा आगे भी -
स्नेह के साथ,
-- लावण्या

12:57 PM  

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