Saturday, April 28, 2007

सूरज मुखिया


ओ,सूरजमुखी के फूल,
तुमने कितने देखे पतझड?
कितने सावन? कितने वसँत ?कितने चमन खिलाये तुमने?
कितने सीँचे कहो, मधुवन?
धूल उडाती राहोँ मेँ,चले क्या?
पगडँडीयोँ से गुजरे थे क्या तुम?
सुनहरी धूप, खिली है आज,
बीती बातोँ मेँ बीत गई रात,
अब और बदा क्या जीवन मेँ?
क्योँ ना कह लूँ मनकी मैँ बात!
तुम सुनते जाना साथी मेरे,
मैँ " सूरजमुखिया " ,तू दीखला बाट !
घूमते रहते सूरज के सँग सँग
मुर्झा जाते हो अँधकार आने पे,
मैँने खिलाये जो बाग बगीचे,
सौँप चला हूँ आज,तेरे हवाले !
करना रखवाली बगिया की तुम,
मैँ ना रहूँ कल,कहीँ, जो चल दूँ!
--लावण्या

5 Comments:

Blogger Harshad Jangla said...

Lavanyaji
Nice poem.

Ab aur 'bada' kya jeevanme...
What is bada?
Rgds.

6:16 AM  
Blogger Udan Tashtari said...

बहुत सुंदर रचना, बधाई!!

7:07 AM  
Anonymous Anonymous said...

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8:15 PM  
Blogger लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Bada = means "what else is there / what else is left in life ?
Harshad bhai,
i like you asking such Q,s to clear up the thoughts expressed by me -
Rgds,
L

7:22 AM  
Blogger Divine India said...

सुरजमुखी के पुष्प से मानव जीवन की कठीन व्याख्या की है…यह तो पूरा दर्शन है जिसमें आना और जाना फिर मंजिल की ओर घूमना…थकर बैठ जाना पुन: नई यौवन को समेट फिर से बहार के पंख पर बैठ कर मीलों उड़ जाना…
Its beautiful!!!

1:24 AM  

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