Thursday, December 07, 2006

दहलीज


( i saw this pic. it reminds me of my childhood home )
शाम को आने का वादा,
इस दिलको तसल्ली दे गया, आने का कह कर तुमने,
हमे सुकूँ कितना दिया!
अमलतास के पीले झूमर भर गये, आँगन हमारा,
साँझ की दीप बाती जली, रोशन हो गया हर किनारा !
पाँव पडे जब दहलीज पर-
हवाने आकर, हमको सँवारा,
आँगन से, बगिया तक, पात पात, मुस्कुराया !
बिँदीया को सजाती उँगलियोँने, काजल नयनोँ मेँ बिखेरा,
इत्रकी शीशी से फिर ले बूँद, हमने उन्हे, गले से लगाया !
घरसे भीतर जाने का रस्ता, लाँघ कर,
जो भी है,जाता ,या आता !
खडी रहती जो, हमेशा, वो दहलीज है!

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